शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

बस यूँ ही....


न जाने क्यूँ आज फिर मन हुआ के
शब्दों
के जरिये दिल में आये जज्बात साझा
करूँ
जो अनायास ही उभर आए हैं
आख़िर क्या वजह है ....??

शायद ... आज फिर लगा की
किसी को समझना या अपना समझने की भूल करना वाकई बेमानी है ...

यह जानने के बाद भी ...
फिर किसी ख़ास पर विश्वास करना
किसी से बेवजह उम्मीद करना ...
उसके सपनो... उसकी आकंशाओ... से ख़ुद को जोड़ना
उसकी हर कामयाबी और नाकामयाबी को अपना समझना....
उसके ग़मों और खुशियों को साझा करना ....

और ख़ुद को यह समझाना की यह शख्स
जिंदगी की हर मोड़ पर हमारे साथ है...
शायद इंसान की नियति बन गयी है...

यह समझते हुए भी की धोखा देना...
किसी की उमीदों को तोड़ना और ...
बीच राह में साथ छोड़ जाना भी इन्सान की ही आदत है.....!!

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