बुधवार, 26 अगस्त 2009

ओम्.................


देवों में प्रथम पूजनीय गणपति बाप्पा के उत्सव के साथ ही रहमत की बारिशों का माह -ऐ-रमजान भी शुरू हो चुका है। लेकिन हमारे चेहरों से ... हमारे परिवेश से.... हमारे बाज़ारों से रौनक नदारद है। ऐसा क्यूँ हैं... इससे जानने की कोशिश हम नही कर रहे हैं। हम नही जानना चाहते की क्यूँ अब ये त्यौहार, हमारे रिश्तों नातों को सहेजने में नाकाफी साबित हो रहे हैं। इससे ज्यादा उत्साहित तो हम वैलेंटाइन डे के दिन होते हैं। या फादर या मदर'स डे के दिन। तो अब हम ये मान लें की हमारे तीज त्योहारों की जगह पचिमी चकाचोंध ने ले ली है। जिस संस्कृति की महज अनुभूति पाने के लिए ही कुछ लोग सात समुन्दर पार कर... अपने जीवन की भोग विलासिता से उकता कर...भारत भूमि की झलक पाने आते हैं...वह यंहा के समाज में बसे उन्ही तीज त्योहारों और उत्सवों के रंग देखने आते हैं... जिनसे हम "ओल्ड फैशन" कह कर अपना दामन बचने की कोशिश कर रहे हैं। abही हाल ही में अमेरिकन माग्जीन "Newsweek" ने अमेरिकान्स पर किए गए अपने शोध के आधार पर कहा है की वंहा के लोग हिंदू होते जा रहे हैं। उनका ईश्वर के प्रति न केवल विश्वास बड़ा है बल्कि वह हिंदू लोगों की तरह ही धर्म का महत्व भी समझने लगें हैं। अमेरिका की ही तरह कुछ दुसरे पछिम देशों में भी योग, ध्यान और हिन्दुओं के आदि मन्त्र ॐ का महत्व बड़ा है।
कितनी हास्यापद स्थिति हैं हमारे देश के लोग अपनी उसी दरोहर को धीरे धीरे भूलते जा रहे हैं। हमारी नींद तब भी नही जब हमारा युवा धुएं के काश लगता हुआ डिस्को में शाम बिताने लगता है। हम तब भी नही जागते जब हमारी बेटियाँ पारंपरिक परिधानों की जगह मिक्रो मिनी में सजी धजी इतराती हैं। हम तब जागते हैं जब कोई विदेशी हमारे अपनी धरोहर(फिर चाहे वः योग हो या भारतीय मसाले) पर पेटेंट करवा कर उसे अपना साबित कर देता है। तब हम अपनी भारतीय सभ्यता की दुहाई देते हैं और इससे दुनिया की सभी संस्कृतियों में सबसे अलहदा बताते हैं और खुद को इस महँ संस्कृति का पैरोकार। आखिर कब तक हम यह रवैया अपनाएंगे? जरा एक बार शांत मन से बैठिये, सांस भरिये और ॐ का उचारण कीजिये, आपके अन्थ्मन के साथ साथ मस्तिक्ष पर जमी गर्त पल में झड जाएगी और फिर सरे सवालों के जवाब खुद ही मिल जायेंगे।

3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा आलेख. पर बीच बीच मे रोमन शब्द खटकते है. आपको एडिट करके इसे ठीक कर लेना चाहिये.

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  2. "मेरे हाथों में कलम भी थमा दी गई, और कहा गया, कैद करो आकाश, पृथ्वी, पर्वत, तितलियाँ, जुगनू, वेद-पुराण, अतीत, भविष्य, वर्तमान, अब ये सब मिलकर मेरा होना, न होना तय करते हैं।"
    आपके प्रोफ़ाइल के ये शब्द भी किसी रचना से कम नही है.

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  3. शुभमगलभावो सहीत बधाई एवम स्वागत!!!!
    आपकी लेखनी अच्छी लगी।
    BHAUT SUNDER LAGI

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